by kanchan devi on Apr 2, 2023
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सभी धर्मप्रेमियों को कुछ महत्वपूर्ण ज्योतिषीय जानकारियां दी जा रही है। जो सभी साथियों के लिए बहुत ही उपयोगी है। जैसा कि हम जानते हैं की 30 मार्च 2025 से नव संवत्सर विक्रम संवत 2082 प्रारंभ हो गया है। उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को शनि भगवान की साडेसाती में बहुत ही कष्ट भोगना पड़ा था।उनका राज पाठ सब खो गया था। शनि भगवान की कृपा होने पर उनका पुनः राज्याभिषेक हुआ। और यह तिथि और महीना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा थी। उनके राज्याभिषेक की खुशी में नव संवत्सर मनाया जाता है। जिसे अब कुल 2081 वर्ष 29 मार्च 2025/चैत्र कृष्ण पक्ष शनिश्चरी अमावस्या को पूरे हो गए है। 29 मार्च 2025, शनिश्चरी अमावस्या को शनि भगवान 9: 46 pm बजे अपनी स्वयं की राशि कुंभ से गुरु की राशि मीन राशि में प्रवेश हो गए है।इसके प्रभाव से मंगल की मेष राशि पर साडेसाती का पहला चरण शुरू और शनि देव की मकर राशि से साडेसाती का अंतिम चरण पूर्ण हो गया है। कुंभ राशि की साडेसाती का अंतिम चरण "पैरों" पर और मीन राशि की साडेसाती का दूसरा चरण "पेट"पर प्रारंभ हो गया है।कर्क और वृश्चिक राशि की ढैया पनौती समाप्त हो गई है।सिंह और धन राशि पर ढैया पनौती प्रारंभ हो गई है। शनि भगवान की महिमा से सब परिचित है। सकारात्मक प्रभाव प्राप्त करने के लिए स्वयं में सकारात्मक उत्पन्न करना आवश्यक है। आकाशीय पिंडों का मनुष्य के शरीर पर प्रभाव पड़ना निश्चित है।एक वयस्क मनुष्य के शरीर का 60% भाग और मस्तिष्क का लगभग 75% भाग पानी से बना होता है। अर्थात पाया जाता है। अगर समुद्र का पानी पूर्णिमा और अमावस्या को प्रभावित हो सकता है। समुद्र के पानी में ज्वार और भाटा आ सकता है। तो मनुष्य के शरीर में विद्यमान पानी प्रभावित क्यों नहीं हो सकता है? तो निश्चित रूप से ग्रह नक्षत्र हमारे शरीर और मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।यह साइंटिफिक फैक्ट है। दूसरी बात पूजा ,पाठ, दान पुण्य और सत्संग से हमारे शरीर और मन को शांति प्राप्त होती है। जो करते हैं उन्हें यह अनुभव प्राप्त होता है। लाभार्थी को भी ऐसा ही अनुभव होता है। और उसके हृदय की गहराइयों से निकली हुई शुभकामनाओं हमारे आंखों और कानों के माध्यम से जब मस्तिष्क और शरीर में प्रवेश करती है तो एक बार उन्हें हमें प्रसन्नता और शांति प्राप्त होती है। यह एक व्यावहारिक पहलू है।

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